सोचता हूँ कि समझना है जरूरी ,मन से मन की बात।
चुप है रिश्ते कि विपरीत है सोच ,पर रहते फिर भी साथ।
एक डगर है, मन उदास मगर है संग मैं,मेरी,मेरे ओर तात।
है अनुज पर अहम बड़ा है,भूल गया दाऊ करना कुछ मीठी बात।
कहाँ गई वो सपनो सी दुनिया,खेल था जिसमें उठापटक घूसे ओर लात।
शब्द एक जो अब संघारक हुआ ,जो था कभी कोई सौगात।
बात बड़ी हुई भाव शून्य, गली सड़क भी हुए अव्वाक।
शायद यह ही होता आया है,सर्दी गर्मी और बरसात।