Sunday 18 January 2015

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विधालय हरिद्वार में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान सभा को संबोधित करते हुए बी के मीना बहन जी तथा महंत रामानंदपुरी जी महाराज

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विधालय हरिद्वार में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान सभा को संबोधित करते हुए बी के मीना बहन जी तथा महंत रामानंदपुरी जी महाराज

एकांत और अकेलापन,

एकांत और अकेलापन
जब भी एकांत होता है, तो हम अकेलेपन
को एकांत समझ लेते हैं। और तब हम
तत्काल अपने अकेलेपन को भरने के लिए
कोई उपाय कर लेते हैं। पिक्चर देखने चले
जाते हैं, कि रेडियो खोल लेते हैं,
कि अखबार पढ़ने लगते हैं। कुछ
नहीं सूझता, तो सो जाते हैं, सपने देखने
लगते हैं। मगर अपने अकेलेपन को जल्दी से
भर लेते हैं। ध्यान रहे, अकेलापन
सदा उदासी लाता है, एकांत आनंद
लाता है। वे उनके लक्षण हैं। अगर आप
घड़ीभर एकांत में रह जाएं,
तो आपका रोआं-रोआं आनंद की पुलक
से भर जाएगा। और आप घड़ी भर अकेलेपन
में रह जाएं, तो आपका रोआं-रोआं
थका और उदास, और कुम्हलाए हुए
पत्तों की तरह आप झुक जाएंगे। अकेलेपन
में उदासी पकड़ती है, क्योंकि अकेलेपन
में दूसरों की याद आती है। और एकांत में
आनंद आ जाता है, क्योंकि एकांत में
प्रभु से मिलन होता है। वही आनंद है, और
कोई आनंद नहीं है।

बदलाव

बदलाव
दुख पैदा होता है क्योंकि हम बदलाव
को होने नहीं देते। हम पकड़ते हैं, हम
चाहते हैं कि चीजें स्थिर हों। यदि तुम
स्त्री को प्रेम करते हो तो तुम उसे आने
वाले कल भी चाहते हो,
वैसी ही जैसी कि वह तुम्हारे लिए आज
है। इस तरह से दुख पैदा होता है। कोई
भी आने वाले क्षण के लिए सुनिश्चित
नहीं हो सकता--आने वाले कल
कि तो बात ही क्या करें?
होश से भरा व्यक्ति जानता है
कि जीवन सतत बदल रहा है। जीवन
बदलाहट है। यहां एक ही चीज
स्थायी है, और वह है बदलाव। बदलाव के
अलावा हर चीज बदलती है। जीवन
की इस प्रकृति को स्वीकारना, इस
बदलते अस्तित्व को उसके सभी मौसम
और मूड के साथ स्वीकारना, यह सतत
प्रवाह जो एक क्षण के लिए
भी नहीं रुकता, आनंदपूर्ण है। तब कोई
भी तुम्हारे आनंद को विचलित नहीं कर
सकता। स्थाई हो जाने
की तुम्हारी चाह तुम्हारे लिए तकलीफ
पैदा करती है। यदि तुम ऐसा जीवन
जीना चाहते हो जिसमें कोई बदलाव न
हो--तुम असंभव बात करना चाहते हो।
होश से
भरा व्यक्ति इतना साहसी होता है
कि इस बदलती घटना को स्वीकार
लेता है। उस स्वीकार में आनंद है। तब सब
कुछ शुभ है। तब तुम कभी भी विषाद से
नहीं भरते।

जनसंख्या विस्फोट

जनसंख्या विस्फोट
उन्नीस सौ सैंतालीस में
जितनी हमारी संख्या थी पूरे
हिंदुस्तान-पाकिस्तान की मिल कर,
आज अकेले हिंदुस्तान की उससे
ज्यादा है। यह संख्या अगर इसी अनुपात
में बढ़ी चली जाती है और फिर दुख
बढ़ता है, दारिद्रय बढ़ता है,
दीनता बढ़ती है, बेकारी बढ़ती है,
बीमारी बढ़ती है, तो हम परेशान होते
हैं, उससे हम लड़ते हैं। और हम कहते हैं
कि बेकारी नहीं चाहिए, और हम कहते
हैं कि गरीबी नहीं चाहिए, और हम कहते
हैं कि हर आदमी को जीवन की सब
सुविधाएं मिलनी चाहिए। और हम यह
सोचते ही नहीं कि जो हम कर रहे हैं
उससे हर आदमी को जीवन
की सारी सुविधाएं
कभी भी नहीं मिल सकती हैं। और
जो हम कर रहे हैं उससे हमारे बेटे बेकार
रहेंगे। और जो हम कर रहे हैं उससे
भिखमंगी बढ़ेगी, गरीबी बढ़ेगी। लेकिन
धर्मगुरु हैं इस मुल्क में, जो समझाते हैं
कि यह ईश्वर के विरोध में है यह बात,
संतति-नियमन की बात ईश्वर के विरोध
में है। इसका यह मतलब हुआ कि ईश्वर
चाहता है कि लोग दीन रहें, दरिद्र रहें,
भीख मांगें, गरीब हों, भूखे मरें
सड़कों पर। अगर ईश्वर यही चाहता है
तो ऐसे ईश्वर की चाह को भी इनकार
करना पड़ेगा।

अप्रसन्नता

अप्रसन्नता
यदि तुम अप्रसन्न हो तो इसका सरल
सा अर्थ यहहै कि तुम अप्रसन्न होने
की तरकीब सीख गए हो। और कुछ नहीं!
अप्रसन्नता तुम्हारे मन के सोचने के ढंग
पर निर्भर करतीहै। यहां ऐसे लोग हैं
जो हर स्थिति में अप्रसन्न होते हैं। उनके
मन में एक तरह का कार्यक"महै जिससे वे
हर चीज को अप्रसन्नता में बदल देते हैं।
यदि तुम उन्हें गुलाब की सुंदरता के बारे
में कहो, वे तत्काल
कांटों की गिनती शुरू कर देंगे। यदि उन्हें
तुम कहो, "कितनी सुंदर सुबहहै,
कितना उजला दिनहै!' वे कहेंगे,
"दो अंधेरी रातों के बीच एक दिन,
तो इतनी बड़ी बात क्यों बना रहे
हो?'ली इसी बात को विधायक ढंग से
भी देखा जा सकताहै; तब अचानक हर
रात दो दिनों से घिर जातीहै। और
अचानक चमत्कार होताहै कि गुलाब
संभव होताहै। इतने सारे कांटों के बीच
इतना नाजुक फूल संभव हुआ!
सब इस बात पर निर्भर करताहै
कि किस तरह के मन का ढांचा तुम
लिए हुए हो। लाखों लोग सूली लिए घूम
रहे हैं। स्वाभाविक ही, निश्चित रूप से,
वे बोझ से दबे हैं; उनका जीवन बस
घिसटना मात्रहै। उनका ढांचा ऐसाहै
कि हर चीज तत्काल नकारात्मक
की तरफ चली जातीहै। यह नकारात्मक
को बहुत बड़ा कर देताहै। जीवन के
प्रति यह रुग्ण, विक्षिप्त, रवैयाहै।
लेकिन वे सोचते चले जाते हैं कि "हम
क्या कर सकते हैं? दुनिया ऐसी हीहै।'
नहीं, दुनिया ऐसी नहींहै!
दुनिया पूरी तरह से तटस्थहै। इसमें कांटे हैं,
इसमें गुलाब के फूल हैंै, इसमें रातें हैं, इसमें
दिन भी हैं। दुनिया पूरी तरह से तटस्थहै,
संतुलित--इसमें सब कुछहै। अब यह तुम्हारे
ऊपर निर्भर करताहै कि तुम क्या चुनते
हो। इसी तरह से लोग इसी पृथ्वी पर
नर्क और स्वर्ग दोनों ही पैदा करते ह

Thursday 15 January 2015

18 जनवरी अलौकिक दिवस

18 जनवरी अलौकिक दिवस
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मनुष्य से फ़रिश्ता और फरिश्ता से देवता होने
की दिलचस्प कहानी -
पिता श्री ब्रम्हा
धरती पर अनेक फूल खिलते हैं और
मुरझा जाते हैँ आकाश मेँ असंख्य तारे चमकते हैं और
विलीन हो जाते है । उदय और अस्त
यही तो दुनिया का क्रम है जिससे यह
संसार सूत्र बंधा हुआ है। व्यक्ति आता है और
चला जाता है । लेकिन कुछ ऐसे
व्यक्ति भी होते हैं जो अपने व्यक्तित्व
की अमिट छाप लोगो के दिल पर छोड जाते
हैं। जिसका स्मरण होते ही मस्तक
श्रद्धा से झुक जाता है। जिस
पिता की संतान होने का गौरव मनुष्य
जीवन के श्रेष्ठ पहलू को उजागर
करता है। ऐसे ही व्यक्तित्व के
धनी कुशल अनुशासक साबित हुए
पिता श्री ब्रम्हा बाबा ।
उनकी जादूई नजरों का नज़ारा बडा कमाल
का था। जिस पर नज़रें टिक गई वह निहाल हो गया ।
अपलक देखने पर भी मन
नहीँ भरता । जिसने भी उंहेँ
एक बार निहार लिया उसकी आँखेँ
वही ठहर गई ।
उनकी आँखों मेँ अमृत का सागर हिलोरे ले
रहा था । ऐसे आचरणयोग्य एकमात्र पुरुषोत्तम साबित
हुए " पिताश्री ब्रम्हाबाबा "
शत शत नमन.......

सकारात्मक सोच की ऊर्जा का परिणाम

क्या है सीमा वाइब्स (तरंगों)
की ?
मैं मानसिक तरंगों की बात कर रहा हूँ।
अनेक बार ऐसा मौका आया है जब मन अचरज से भर
गया है ये समझ कर ये
सारा करिश्मा तरंगों का है,मानसिक तरंगों का ।
तरंगों की शक्ति असीम हैं।
इस
शक्ति की अनदेखी करना बहुत
बड़े घाटे का सौदा है।
मानसिक तरंगे जो कर सकती हैं वो लम्बे
चौड़े भाषण नहीं कर सकते। ये तरंगें
हमारे जीवन को गहराई से प्रभावित
करती हैं।
इसकी सूक्ष्मता में जाना और
इसको ठीक से समझना परमावश्यक है।
ये तरंगे हमारे खुद के जीवन
को भी वृहत रूप से प्रभावित
करती हैं। हमारे खुद के मानसिक तरंग
हमारे जीवन को ऊँचाई पर ले जा सकते हैं
अथवा हमें गर्त में भी पंहुचा सकते हैं.
अर्थात संकल्पों के उत्पन्न होने के समय इस बात
का पूरा ख्याल रखा जाना चाहिए कि ये सकारात्मक है
या नकारात्मक?
मानसिक तरंगो को सकारात्मक बनाये रखने
की विधि क्या है ?
विधि है कि अनवरत हमारा आत्मिक भान कायम रहे।
आत्मिक भान की अवस्था में मन में
पवित्र और शक्तिशाति तरंगों अथवा भावनाओ
की ही उत्पत्ति होती रहती है।
हमारी उच्चतर अवस्था कायम
रहती है। हम उच्चतम प्रभु से
भी युक्त रहते हैं। हमारे सकारात्मक
तरंग महौल को पूरी तरह से
प्रभावी बनाये रखने में सक्षम रहते हैं।
सकारात्मक वाइब्स हमारे शारीरिक
स्वास्थय के लिए
भी जरूरी हैं। सकारात्मक
वाइब्स अनेक बीमारिओं से
हमारी रक्षा करते हैं। थोड़ा अटेंशन बनाये
रखकर हम ये सब प्राप्त कर पाएंगे। ओम शांति।

आज का विचार चरण उनके ही पूजे जाते हैं जिनके आचरण पूजने योग्य हो

आज का विचार
चरण उनके ही पूजे जाते हैं
जिनके आचरण पूजने योग्य हो

सहनशीलता, patience

सहन शीलता में
कमी.....अर्थात
अपनी ही आध्यात्मिक
शक्ति में गिरावट।
मुख से ना बोलना वा हाथापाई ना करना किन्तु मन
ही मन दूसरों की बातों को सोच
दुखी होते रहना ही सहन
शीलता का अर्थ नही है।
सच्चे अर्थ में सहन शीलता का अर्थ है
कि दूसरे के दुर्व्यवहार का हमारी मानसिक
स्तिथि पर कोई
भी दुःखदायी प्रभाव ना पड़े।
हम आनन्द और ख़ुशी में झूलते रहें।
इस संसार में भाँती भाँती के
लोग हैं।एक व्यक्ति दूसरे से नही मिलता।
सभी के संस्कार भित्र भिन्न हैं।
अत:यदि हम चाहें कि घर परिवार के
सभी सदस्य हमारी पसन्द
के हो।उनके व्यवहार वैसे हों जैसे हम चाहते हैं
तो यह इस कलयुगी संसार में सम्भव
ही नही है।
��अतः परिवार के भिन्न भिन्न सदस्यों के भिन्न
भिन्न संस्कार देख कर हमे उन्हें सहन करना चाहिए
ना कि उन्हें छोड़ने के विचार मन में लाने चाहिए
क्योकि अगर हम उन्हें छोड़ कर
दूसरी जगह चले भी जाएंगे।
अन्य लोगो से सम्बन्ध रख लेंगे
तो भी भिन्न भिन्न संस्कार
तो वहाँ भी होंगे ही।
��अत:सहनशीलता को अपनाना आपकी हार
नही बल्कि जीत है।सहन
करने से
आत्मा की शक्ति बढ़ती है।
सहन
ना करना अपनी ही आध्यात्मिक
शक्ति को बढ़ने से रोकने के समान है।इसमें
अपनी ही हानि है।

Brahmakumaris haridwar ,प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विधालय हरिद्वार के तत्वावधान में आयोजित आध्यात्मिक कार्यक्रम के दौरान सभा को सम्बोधित करते हुए बी के मीना बहन जी तथा महंत केवलयानंद जी महाराज हरिद्वार

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विधालय हरिद्वार के तत्वावधान में आयोजित आध्यात्मिक कार्यक्रम के दौरान सभा को सम्बोधित करते हुए बी के मीना बहन जी तथा महंत केवलयानंद जी महाराज हरिद्वार

Monday 12 January 2015

शिवरात्रि आने वाली है। परमात्मा शिव के यादगार का पर्व है। आज जो दुनिया के हालात है वह यह बताने के लिए काफी है कि यह समय बदलाव का है। स्वयं को बदलिये और आने वाले समय के इंतजार से पहले इंतजाम किजिए। क्योंकि आने वाला समय दिन प्रतिदिन खराब होता जायेगा। ऐसे समय में एक परमात्मा ही है जो आपके साथ हमेशा आपकी मदद करेगा। परमात्मा शिव पिछले 79 वर्षों से इस दुनिया में नयी दुनिया की स्थापना का महान कार्य करा रहे है। बस आप उसमें सहयोगी बने और अपने जीवन के साथ दूसरों के जीवन को श्रेष्ठ बनायें। परमात्मा ने कहा है कि जब मैं इस सृष्टि पर आता हूँ तब कोटि में कोई और कोई में भी कोई ही मुझे पहचानता है। यह वही समय है जब लोग भौतिकता के चकाचौंध में ईश्वर का तो दूर खुद के परिचय का भी ज्ञान नहीं है। इसी पर प्रस्तुत है शिव आमंत्रण का विशेष अंक।

शिवरात्रि आने वाली है। परमात्मा शिव
के यादगार का पर्व है। आज जो दुनिया के
हालात है वह यह बताने के लिए काफी है
कि यह समय बदलाव का है। स्वयं
को बदलिये और आने वाले समय के इंतजार
से पहले इंतजाम किजिए। क्योंकि आने
वाला समय दिन प्रतिदिन खराब
होता जायेगा। ऐसे समय में एक
परमात्मा ही है जो आपके साथ
हमेशा आपकी मदद करेगा।
परमात्मा शिव पिछले 79 वर्षों से इस
दुनिया में
नयी दुनिया की स्थापना का महान
कार्य करा रहे है। बस आप उसमें
सहयोगी बने और अपने जीवन के साथ
दूसरों के जीवन को श्रेष्ठ बनायें।
परमात्मा ने कहा है कि जब मैं इस सृष्टि पर
आता हूँ तब कोटि में कोई और कोई में
भी कोई ही मुझे पहचानता है। यह
वही समय है जब लोग भौतिकता के
चकाचौंध में ईश्वर का तो दूर खुद के परिचय
का भी ज्ञान नहीं है।
इसी पर प्रस्तुत है शिव आमंत्रण का विशेष
अंक।

Happy new year :-)

Gift from heart