सहन शीलता में
कमी.....अर्थात
अपनी ही आध्यात्मिक
शक्ति में गिरावट।
मुख से ना बोलना वा हाथापाई ना करना किन्तु मन
ही मन दूसरों की बातों को सोच
दुखी होते रहना ही सहन
शीलता का अर्थ नही है।
सच्चे अर्थ में सहन शीलता का अर्थ है
कि दूसरे के दुर्व्यवहार का हमारी मानसिक
स्तिथि पर कोई
भी दुःखदायी प्रभाव ना पड़े।
हम आनन्द और ख़ुशी में झूलते रहें।
इस संसार में भाँती भाँती के
लोग हैं।एक व्यक्ति दूसरे से नही मिलता।
सभी के संस्कार भित्र भिन्न हैं।
अत:यदि हम चाहें कि घर परिवार के
सभी सदस्य हमारी पसन्द
के हो।उनके व्यवहार वैसे हों जैसे हम चाहते हैं
तो यह इस कलयुगी संसार में सम्भव
ही नही है।
अतः परिवार के भिन्न भिन्न सदस्यों के भिन्न
भिन्न संस्कार देख कर हमे उन्हें सहन करना चाहिए
ना कि उन्हें छोड़ने के विचार मन में लाने चाहिए
क्योकि अगर हम उन्हें छोड़ कर
दूसरी जगह चले भी जाएंगे।
अन्य लोगो से सम्बन्ध रख लेंगे
तो भी भिन्न भिन्न संस्कार
तो वहाँ भी होंगे ही।
अत:सहनशीलता को अपनाना आपकी हार
नही बल्कि जीत है।सहन
करने से
आत्मा की शक्ति बढ़ती है।
सहन
ना करना अपनी ही आध्यात्मिक
शक्ति को बढ़ने से रोकने के समान है।इसमें
अपनी ही हानि है।
Thursday, 15 January 2015
सहनशीलता, patience
Labels:
गुण
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